इस सदी के महान वैश्विक आर्थिक पतन की भविष्यवाणी कई लोग नहीं कर सके जिसके फलस्वरूप वैश्विक अर्थव्यवस्था पर एक पूर्णविराम लग गया। जो अर्थव्यवस्था 2 0 0 8 की आर्थिक मंदी से उभर नहीं पायी थी वो अत्यंत तीव्रता से दूसरी आर्थिक मंदी की ऒर उन्मुख है। सभी चुनौतियों में से सबसे भयंकर चुनौती दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से अधिकांश का संचयी समर्पण करना है। उस पर यूरोप के ऋण संकट ने, कई एशियाई देशों की अस्थिर अर्थव्यवस्था ने और मध्य पूर्व में युद्ध जैसी स्थितियों ने विश्व की अर्थव्यवस्था को आर्थिक मंदी जैसी परिस्थितियों के रसातल मे धकेल दिया। इन अशांत परिस्थितियों में, यूरो संकट लगातार सबसे बड़ा दुर्बल कारक रहा है और सुधार के कोई निकटतम संकेत नहीं हैं। वितीय बाजारों के ख़राब नियंत्रण और राजकोषीय दुष्प्रबंधन ने ग्रीस जैसे देशों को राजकोषीय आपदा की और उन्मुख कर दिया है। रोजगार एवं प्रति व्यक्ति आय जैसे प्रमुख आर्थिक संकेतकों को प्रारंभ से ही उदासीनतापूर्वक नजरअंदाज कर दिया गया। उनकी नीतियों में विश्वास और दिशा की कमी ने सुनिश्चित किया कि आर्थिक तनाव समय के साथ केवल बढता ही रहेगा। अमेरिका की राजकोषीय चुनौतियां विविध हैं। बेरोजगारी के अस्वीकार्य स्तर, मुद्रास्फीति प्रवृत्तियाँ, तीव्र ऋण वृद्धि और बढते चालू खाता घाटे से देश त्रस्त है। दुनिया की सबसे संपन्न अर्थव्यवस्था गंभीर बजट घाटे (जो कि, आंशिक रूप से, भारी अनियोजित सार्वजनिक व्यय के कारण हुआ है) से व्याकुल है, जो कि बाद में भारी राष्ट्रीय ऋण और बढे हुए करों के रूप मे सामने आया है। चीन और मैक्सिको जैसे देशों की अकुशल व्यापारिक नीतियों ने भी परोक्ष रूप से अपनी भूमिका अदा की है। यहाँ तक कि रूढ़िवादी उपायों के चलते भी अमेरिका की राजकोषीय नीतियों ने उसे आर्थिक मंदी की ओर धकेला है। चीन, ब्राज़ील और भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के क्षीण विकास ने मामले को और बदतर बना दिया है। इन विपरीत परिस्थितियों में, मुश्किलों से घिरी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए आशा की कुछ किरण बची है। आर्थिक गतिविधियों में सकारात्मक तेजी, औद्योगिक गतिविधियों में पुनरुत्थान और विकासशील और विकसित दोनों ही देशों में उत्पादों के उत्पादन और व्यापार ने समता बहाल करने में मदद की है और दुनिया भर के बाजारों के रुझान में निश्चित रूप से परिवर्तन किया है। भारत जैसे देशों ने ठोस आर्थिक सुधारों और नीतियों का सहारा लेते हुए पिछली दो तिमाहियों में काफी बढ़ोतरी दर्ज की है। हमें और अधिक लचीले अमेरिका को भी नहीं भूलना चाहिये जो अपने दुर्भाग्य का अंत करने के लिये तत्पर है और अपनी राजकोषीय समस्याओं का शमन करने की दिशा में एक प्रमुख कदम उठा रहा है। यूरोपीय बाजारों ने त्वरित मांग में तेजी के लक्षण दिखाए हैं जिसके परिणामस्वरूप बाजार में व्याप्त तनाव को दबाने में मदद मिली है। वैश्विक परिदृश्य में अस्थिरता के चलते उल्लेखनीय गिरावट दिखाई दी है। पुनरुत्थान की रफ़्तार काफी धीमी रही है, लेकिन फिर भी उसने सुधार के लक्षण दिखाए हैं। इन प्रोत्साहित करने वाली प्रवृत्तियों के आधार पर आईएमएफ ने भाविशावाणी की है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का 2013 में 3.6% की दर से बढ़ने की उम्मीद है जो की वर्तमान वर्ष में 3% है। हालांकि इस होने वाले पुनरुत्थान के बारे में अभी भी चिंताएं हैं और यह अभी उस परिस्थिति से काफी दूर है जहां दुनिया राहत की सांस ले सके। वित्तीय बाजारों में सुधार की स्थिति ने एक बदलाव की उम्मीद को जगाया है। हालांकि आईएमएफ ने स्पष्ट रूप से सूचित किया है कि वैश्विक बदलाव एक क्रमिक प्रक्रिया होगी और उसे आर्थिक मंदी से पहले की स्तिथि तक आने में कई दशक लगेंगे।